Sunday, September 30, 2018

सपने टूटे तारों से

रेत की तरह मुट्ठी से, ये वक़्त फिसलने लगा। 
पूर्णिमा का चाँद भी, धीरे-धीरे पिघलने लगा।।
यह आया कैसा अँधेरा, सूरज भी अब ढलने लगा। 
सपने टूटे तारों से, आसमाँ  जैसे गिरने लगा।।

Saturday, September 29, 2018

खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की



खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की, श्री हरिवंशराय बच्चन जी की एक बहुत ही सुन्दर दिल को छू लेने लेने वाली कविता है। आशा करता हूँ की आप सबको यह कविता पसंद आएगी।


ख़्वाहिश नही मुझे मशहूर होने की।
आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।

Friday, September 28, 2018

चुनौतियाँ मुस्कुराती हैं



देख चुनौतियाँ सफर मेरा, मुझ पर मुस्कुराती हैं।

संघर्ष देखकर मेरा रोज़, एक अनोखा अट्टहास कर जाती हैं।।
हार देखती मेरी जब-जब, एक नया खेल रचाती हैं। 
देख चुनौतियाँ सफर मेरा, मुझ पर मुस्कुराती हैं।।

Thursday, September 27, 2018

मातृभूमि वंदन

वंदन करता उस भूमि का, जो जगत गुरु कहलाई।
पिघल कर मोम की भांति, दुनिया में उजियारा लायी।।
सर्व धर्म समभाव का जिसने दुनिया को पाठ सिखाया।
मानवता की अखंड ज्योति का, जिसने है दीप जलाया।।
पश्चिम में फैले अंधियारे  को, किया पूरब के सूरज ने रौशन।
देख रह गयी स्तभ्द ये दुनिया, भारत माँ का विशाल हृदय मन।

आग जलनि चाहिए - दुष्यंत कुमार

हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए।

आज यह दिवार, पर्दों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी की ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

आखों में रहा दिल में उतारकर नहीं देखा


आँखों में रहा दिल में उतारकर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफिर ने समुन्दर नहीं देखा।

Wednesday, September 26, 2018

कभी धूप ,कभी छाँव - hindi poetry

मौसम ने ओड़ा कैसा ये मुखौटा 
कभी धूप, कभी छाँव,
चल रहा मुसाफिर फिर भी लेकर कितने घाव,

हार कर मैंने लड़ना सीखा है

हार कर मैंने लड़ना 
सीखा है ,
खोया बहुत कुछ मगर