रेत की तरह मुट्ठी से, ये वक़्त फिसलने लगा।
पूर्णिमा का चाँद भी, धीरे-धीरे पिघलने लगा।।
यह आया कैसा अँधेरा, सूरज भी अब ढलने लगा।
सपने टूटे तारों से, आसमाँ जैसे गिरने लगा।।
पूर्णिमा का चाँद भी, धीरे-धीरे पिघलने लगा।।
यह आया कैसा अँधेरा, सूरज भी अब ढलने लगा।
सपने टूटे तारों से, आसमाँ जैसे गिरने लगा।।

