वंदन करता उस भूमि का, जो जगत गुरु कहलाई।
पिघल कर मोम की भांति, दुनिया में उजियारा लायी।।
सर्व धर्म समभाव का जिसने दुनिया को पाठ सिखाया।
मानवता की अखंड ज्योति का, जिसने है दीप जलाया।।
पश्चिम में फैले अंधियारे को, किया पूरब के सूरज ने रौशन।
देख रह गयी स्तभ्द ये दुनिया, भारत माँ का विशाल हृदय मन।।
पर कपूतों की कैसी ये साज़िश ,भूल गये पी के माँ का अमृत पावन।
घिरता दिखता बँटवारे के मेघों से आज गगन।।
अपने परायों को जिस माँ की छाती गले लगाती।
करते उस माँ के टुकड़े करने की बातें, तुमको लाज ना आती।।
करते प्रतिज्ञा इस बार, रावण नहीं विभीषणों को जलाएंगे।
माँ की अखंडता को करते जो खंडित, उन्हें एक नयी सीख सिखाएंगे।।
ना सुलगाओ बंटवारे की चिंगारी,ना खेलो ये खेल घिनौने।
अगर किये प्रयास तुमने,एक नहीं दो नहीं, सैंकड़ो अर्जुन शस्त्र उठाएंगे।।
--तरुण पाठक
पिघल कर मोम की भांति, दुनिया में उजियारा लायी।।
सर्व धर्म समभाव का जिसने दुनिया को पाठ सिखाया।
मानवता की अखंड ज्योति का, जिसने है दीप जलाया।।
पश्चिम में फैले अंधियारे को, किया पूरब के सूरज ने रौशन।
देख रह गयी स्तभ्द ये दुनिया, भारत माँ का विशाल हृदय मन।।
पर कपूतों की कैसी ये साज़िश ,भूल गये पी के माँ का अमृत पावन।
घिरता दिखता बँटवारे के मेघों से आज गगन।।
अपने परायों को जिस माँ की छाती गले लगाती।
करते उस माँ के टुकड़े करने की बातें, तुमको लाज ना आती।।
करते प्रतिज्ञा इस बार, रावण नहीं विभीषणों को जलाएंगे।
माँ की अखंडता को करते जो खंडित, उन्हें एक नयी सीख सिखाएंगे।।
ना सुलगाओ बंटवारे की चिंगारी,ना खेलो ये खेल घिनौने।
अगर किये प्रयास तुमने,एक नहीं दो नहीं, सैंकड़ो अर्जुन शस्त्र उठाएंगे।।
--तरुण पाठक
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