Thursday, September 27, 2018

आग जलनि चाहिए - दुष्यंत कुमार

हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए।

आज यह दिवार, पर्दों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी की ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर,हर गॉंव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, 
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

--दुष्यंत कुमार 

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