मौसम ने ओड़ा कैसा ये मुखौटा
कभी धूप, कभी छाँव,
चल रहा मुसाफिर फिर भी लेकर कितने घाव,
रह पथ पर अग्रसर तेरा आशियाना भी आएगा,
क्या हुआ अगर वक्त का इम्तिहान बड़ा है,
ले हौंसला चट्टानों से, हर मौसम में डट कर खड़ा है।
ना देख पीछे मुड़ कर, तय करे हुए रास्ते पर अभिमान आएगा,
अभी तो सफर बाकी है बहुत, ना जाने कितनी ठोकरें तू खायेगा,
मंज़िलें मिली हैं उन्हें,जिन्होंने हर चुनौती को स्वीकारा है,
हताश होकर बैठ गया जो, उसे तो किस्मत ने भी नकारा है,
डटा रह इन तूफानों में, देख तेरा हौंसला ये मौसम भी पस्त हो जाएगा,
करता रह प्रयास निरंतर, हर सफर , हर मंज़िल तू तय कर जाएगा।
--तरुण पाठक
--तरुण पाठक
2 comments:
Very well written bro...it is a poem that can become a constant source for motivation.
very inspirational..!!
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