Monday, October 22, 2018

कलम, आज उनकी जय बोल



जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

Saturday, October 20, 2018

अग्निपथ- हरिवंश राय बच्चन



वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

Wednesday, October 17, 2018

गलतियों से जुदा तू भी नहीं

गलतियों से जुदा तू भी नहीं ऐसी कविता है जो यह एहसास दिलाती है कि एक-दूसरे पर इलज़ाम लगाने से सिर्फ ग़लतफहमियां ही बढ़ती हैं। किसी ने बहुत सही ही कहा कहा है कि दुश्मनी जमके करो लेकिन यह हमेशा याद रखना जब भी रिश्ते वापस जुड़े तो कुछ ऐसे काम मत करना जिससे ज़िन्दगी भर शर्मिंदा रहना पड़े। आशा है की यह कविता पढ़ने के बाद सभी अपने उलझे रिश्ते सुधारने की तरफ कदम बढ़ाएंगे। कविता का आनंद लीजिये। 

Monday, October 15, 2018

गीत नया गाता हूँ - अटल बिहारी वाजपयी




श्री अटल बिहारी वाजपयी द्वारा लिखित हिन्दी कविता, गीत नया गाता हूँ उनही के शब्दों में | उमीद है यह कविता आपके दिल तक पहुँचेगी |






कवि उदास हैं। लिखने की उसकी इच्छा नहीं हैं। फिर भी लिखता हैं। इस तरह से शुरू करता हैं –




गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ

Saturday, October 13, 2018

थकन को ओढ़ कर- hindy poetry by Munnawar Rana



थकन को ओढ़ कर बिस्तर में जाके लेट गए

हम अपनी कब्र -ऐ -मुक़र्रर में जाके लेट गए

तमाम उम्र हम एक दुसरे से लड़ते रहे
मगर मरे तो बराबर में जाके लेट गए

Thursday, October 11, 2018

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो


राहत इन्दौरी (जन्म: 1 जनवरी 1950) एक भारतीय उर्दू शायर और हिंदी फिल्मों के गीतकार हैं।वे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके हैं।



अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है |

Monday, October 8, 2018

कोई दीवाना कहता है



कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

Friday, October 5, 2018

न मैं कंघी बनाता हूँ न मैं चोटी बनाता हूँ



न मैं कंघी बनाता हूँ न मैं चोटी बनाता हूँ

ग़ज़ल में आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूँ

ग़ज़ल वह सिन्फ़-ए-नाज़ुक़ है जिसे अपनी रफ़ाक़त से

Thursday, October 4, 2018

जो डलहौज़ी न कर पाया


जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे
कमीशन दो तो हिन्दोस्तान को नीलाम कर देंगे

Wednesday, October 3, 2018

खट्टी चटनी जैसी माँ




बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।