Monday, October 15, 2018

गीत नया गाता हूँ - अटल बिहारी वाजपयी




श्री अटल बिहारी वाजपयी द्वारा लिखित हिन्दी कविता, गीत नया गाता हूँ उनही के शब्दों में | उमीद है यह कविता आपके दिल तक पहुँचेगी |






कवि उदास हैं। लिखने की उसकी इच्छा नहीं हैं। फिर भी लिखता हैं। इस तरह से शुरू करता हैं –




गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ




लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे का शहर,

अपनों के मेले में, मीत नहीं पाता हूँ,
गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ


फिर ये विश्वासघात की कल्पना हैं –




पीठ में छूरी सा चाँद, राहु गया रेखा फान्द,

मुक्ति के क्षणों में, बार-बार बंध जाता हूँ,
गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ




लेकिन परिस्थिति बदली, मनोस्थिति बदली, कवि ने कहा की “मैं लिखूंगा!”





कवि ने लिखा –




गीत नया गाता हूँ, गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात
प्राची में, अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ
गीत नया गाता हूँ, गीत नया गाता हूँ




इसका अंतिम हैं –




टूटे हुए सपने की सुने कौन, सिसकी?

अंतर को चीर व्यथा, पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा 
काल के कपाल पर, लिखता-मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ, गीत नया गाता हूँ




– श्री अटल बिहारी वाजपेयी

0 comments:

Post a Comment